
गोंडा ज़िले के कलेक्ट्रेट परिसर में एक अनोखा दृश्य देखने को मिला, जहाँ राष्ट्रीय छात्र पंचायत के कार्यकर्ता मच्छरदानी में बैठकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। विरोध था – प्राइवेट स्कूलों की फीस वसूली की ‘खून चूस’ नीति के खिलाफ। आंदोलनकारियों ने कहा, “मच्छरों से तो मच्छरदानी बचा लेती है, लेकिन इन स्कूलों से कैसे बचें?”
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छात्र नेता का तंज: मच्छर तो फिर भी शरीफ हैं!
राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवम पांडेय ने पत्रकारों से कहा, “मच्छर रात में ही खून पीते हैं, लेकिन प्राइवेट स्कूल 24×7 जेब काटते हैं। ड्रेस, किताब, बैग, ट्यूशन, क्रीड़ा शुल्क – हर चीज़ पर चार्ज है। ये तो खून चूसने में मच्छरों से भी आगे निकल चुके हैं।” उनका कहना था कि सरकार की चुप्पी इस लूट को खुली छूट दे रही है।
नर्सरी की फीस, कॉलेज की EMIs
एक अभिभावक सिद्धार्थ दुबे, जिन्होंने हाल ही में अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराया, बोले – “इतनी फीस तो मैंने ग्रेजुएशन में नहीं भरी थी, जितनी अब बच्चों की प्लेग्रुप में भरनी पड़ रही है। नर्सरी में दाखिले के साथ ही ऐसा लगने लगता है कि जैसे आप किसी बैंक से होम लोन ले चुके हैं।”
गांव-गांव चौपाल से शुरू हुआ यह अनोखा संघर्ष
जिला महामंत्री आलोक गुप्ता ने बताया कि यह सिर्फ प्रदर्शन नहीं बल्कि एक जनांदोलन की शुरुआत है। राष्ट्रीय छात्र पंचायत कई दिनों से गांव-गांव जाकर चौपाल कर रही है, हस्ताक्षर अभियान चला रही है और अभिभावकों को जागरूक कर रही है। उनका कहना था, “अगर हमारी मांग नहीं मानी गई, तो ये आंदोलन मच्छरदानी से निकलकर पूरे प्रदेश में बिस्तर फैला देगा।”
मांग साफ: रेगुलेशन बिल लाओ, लूट बंद करवाओ
छात्रों की स्पष्ट मांग है कि उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में फीस रेगुलेशन बिल लाए ताकि निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाई जा सके। उनका कहना है कि शिक्षा व्यापार नहीं हो सकती, यह सेवा होनी चाहिए।
सरकार की चुप्पी, स्कूलों की लूट: जनता हताश
शिवम पांडेय ने कहा, “जब सरकार तेल, सड़क, रेल, जेल – हर चीज़ पर बोलती है, तो शिक्षा पर चुप क्यों है? आज एक आम अभिभावक घर खर्च और बच्चों की फीस के बीच फंसकर जी रहा है। यह चुप्पी शर्मनाक है।”
आंदोलन बना जनता की आवाज़
यह विरोध प्रदर्शन भले ही प्रतीकात्मक था, लेकिन इसका संदेश तीखा और स्पष्ट है – जब तक शिक्षा को लेकर सरकारी जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक मच्छरदानी जैसे प्रतीकों से जनता का रोष बाहर आता रहेगा। यह केवल विरोध नहीं, एक सर्जनात्मक विद्रोह है, जो ‘खून चूसती शिक्षा व्यवस्था’ के खिलाफ समाज की आवाज़ बन रहा है।